दिल की बातें- दिल से दिल तक

IIश्री हनुमान चालीसाII My Files Download Here श्री बालाजी, मेहंदीपुर, राजस्थान Photo  Photo आरती Online Calculator Openline Communication My Photos Poem Blank Ad Rates




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जो दवा बन के आया वही जखम दे गया
कांटो से लगाने को मुझे मरहम दे गया,

दुनिया होती है हसीँ चाहतों की मंजिल
उम्र भर के लिये ऐसे कई वहम दे गया,

दूर हुआ तो साँसे भी साथ ले गया मेरी
जाते जाते ताउम्र जीने की कसम दे गया,

आकर आँखों में भीग जाते हैं ख्वाब सारे
पलकों के दायरे इस कदर वो नम दे गया,

साथ चला तो सफर सारे ही मुफीद रहे
अकेली राहों को मेरे थके कदम दे गया,

अश्क भरकर लिख देती है रंजोगम को
मेरे हाथों को वो ऐसी एक कलम दे गया,

मिलेगा दामन तो आग ही लग जायेगी
मेरी आँखों को वो आंसू यूँ गरम दे गया,

वैसे ही दुनिया में मौजूद थे दीवाने कई
जमाने को एक और "मणि" बेशरम दे गया।

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बुढ़ापे में अलग अलग जीना गंवारा हो गया
बेटों के बीच में माँ बाप का बंटवारा हो गया,

ऊँगली पकड़कर दिन रात चलना सिखाया
छड़ी का अब दिन रात का सहारा हो गया ।

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मुक़ददर बिन मंजिल की सब डगर दे गया

मुसाफिर को ज़िंदगी भर का सफर दे गया,

डरे हुए हैं चिराग शिद्द्त से घर के सारे
हवा का झोंका तूफ़ानो की खवर दे गया,

मेरी दुनिया चला गया साथ लेकर अपने
और रहने को मुझको सारा शहर दे गया,

दवा समझकर पी ली थी एक बार हमने
मगर ये चाहत का रंग हंसी ज़हर दे गया,

ना पहुंची कभी साहिल तक ख्वाब में भी
हसरतों की ऐसी एक सहमी लहर दे गया,

मार के पत्थर तालाब होता ज्यूँ बदहवास
बादलों का ये टुकड़ा ऐसी दोपहर दे गया,

थक कर बैठ गए थे हम बंदिशों से मगर
उड़ता हुआ पिंज़रा हौंसलों को पर दे गया,

हैं हरसू अँधेरे, सन्नाटे और वीराने ही 
यह वक्त रहने को मुझको ऐसा घर दे गया ।

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मैं वहीं पर खड़ा तुमको मिल जाऊँगा,
जिस जगह जाओगे तुम मुझे छोड़ कर।
अश्क पी लूँगा और गम उठा लूँगा मैं,
सारी यादों को सो जाऊंगा ओढ़ कर ।।
जब भी बारिश की बूंदें भिगोयें तुम्हें,
सोच लेना की मैं रो रहा हूँ कहीं,
जब भी हो जाओ बेचैन ये मानना
खोल कर आँख मै सो रहा हूँ कहीं,
टूट कर कोई कैसे बिखरता यहाँ
देख लेना कोई आइना तोड़ कर;
रास्ते मे कोई तुमको पत्थर मिले
पूछना कैसे जिन्दा रहे आज तक,
वो कहेगा जमाने ने दी ठोकरें
जाने कितने ही ताने सहे आज तक,
भूल पाता नहीं उम्रभर दर्द जब
कोई जाता है अपनो से मुंह मोड़ कर;
मैं तो जब जब नदी के किनारे गया
मेरा लहरों ने तन तर बतर कर दिया,
पार हो जाऊँगा पूरी उम्मीद थी
उठती लहरों ने पर मन में डर भर दिया,
रेत पर बैठकर जो बनाया था घर
आ गया हूँ उसे आज फिर तोड़ कर।।

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दिलों में जरा सी हम पनाह मांगते हैं
पत्थरों से हम अपनी राह मांगते हैं,

बन गए हैं रेगिस्तान जलते हुए से ही
मेरे ये पलक सागर अथाह मांगते हैं,

रुक गयीं कश्तियाँ थककर मझधार में
मांझी तेज़ हवा का अब प्रवाह मांगते हैं,

सज़ा मिली जिसमे बाहों की कैद की थी
मेरे हाथ आज फिर वही गुनाह मांगते हैं,

साथ रहकर भी दर्द कभी समझती नहीं
आईने दीवारों से जरा सी चाह मांगते हैं,

आज वो आएंगे ख्वाबों में सो जाओ
ज़माने से फिर ऐसी हम अफवाह मांगते हैं।

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हम हरसू ही यादों की कबर में रहते हैं
चंद चेहरे हरपल मेरी नज़र में रहते हैं,

कैसे होगा बाल बांका कभी मेरा क्यूंकि हम
किसी की दुआओं के असर में रहते हैं,

डुबो तो दूँ सारी बस्ती को आंसुओं से
मगर कुछ अपने भी शहर में रहते हैं,

काट के बनाओगे आशियाँ पर सोंच लो
कुछ परिंदे बर्षों से इस शज़र में रहते हैं,

ना बन कभी पत्थर का साहिल सुन ले
सागर में कांच से अरमाँ लहर में रहते हैं,

खरीद लेते हैं जो सब कुछ ही जहां में
वही लोग सदा हरपल खबर में रहते हैं

 

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रेत के टुकड़े मेरी हस्ती को मिटाना चाहते हैं
जिनको चलना सिखाया वो गिराना चाहते हैं,

गिराकर बिज़लियाँ ख़ाक कर दिया आशियाँ
अब यह तूफ़ान बची राख भी उड़ाना चाहते हैं,

अश्क खुश हैं कि अब ज़ुदा ना होंगे आँखों से
जबसे मालुम हुआ कि हम मुस्कुराना चाहते हैं,

उनके बिछाए कांटे रख लिए निशानी समझके
और वो मेरे दिए फूलों को भी जलाना चाहते हैं,

दिल जला के ही कर लेते हैं रौशनी अंधेरों में
चरागों को फकत हम इतना बताना चाहते हैं,

ना चाहत कि चमकूँ चाँद बनकर आसमाँ में
हम बस जुगनू बनकर टिमटिमाना चाहते हैं,

गुजर गयीं हैं मुद्द्ते ही हँसे हुए हमको
बस एक बार बच्चों सा खिलखिलाना चाहते हैं

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देखकर आइना वो मुस्कुराता बहुत है
अकेले में वो हरपल गुनगुनाता बहुत है,

आशियाँ बना लिया है हरे भरे शज़र पे
आजकल वो परिंदा चहचहाता बहुत है,.

ना-वाकिफ है ज़िंदगी की मुश्किलों से
मेरा बच्चा अभी खिलखिलाता बहुत है,

खुद ही खुद से नज़र मिला नहीं पाता
देखके अपनी तस्वीर शरमाता बहुत है,

अहसास मोहब्बत का हुआ है नया नया
वो एक तस्वीर होंठो से लगाता बहुत है,

काँटों भरी राहपे चलने की आदत है हमे
हसीन राहों पे कदम डगमगाता बहुत है,

ज़ुदा होना नसीब था हमारा पर वो
मेरे हाथों से अपना हाथ छुड़ाता बहुत है॥

 

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"दर्द" हूँ इसीलिए तो उठा हूँ मैँ
"ज़ख्म" होता तो कब का भर गया होता।

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लोग पूछते हैं.. कौन है वो जो तेरी ये हालत कर गया,
मैं मुस्कुरा के कहता हूँ..

उसका नाम हर किसी के लब पे अच्छा नहीं लगता..

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मेरे पत्थर दिल की तुम लकीर बनकर रहना
बिखरे हुए अरमानो की तस्वीर बनकर रहना,

मेरे उजाले गिरवी हैं सारे बेहिस वक्त के पास
मेरी अँधेरी ज़िंदगी की तकदीर बनकर रहना,

भाग पड़ता हूँ ख्वाबों में भी तेरी दहलीज़ पर
तुम सदा मेरे कदमों की ज़ंज़ीर बनकर रहना,

प्यास बुझा लेता हूँ ओस से गुलशन की सदा
मेरी आँखों में हमेशा तुम नीर बनकर रहना,

जानता हूँ हकीकत में अमानत हो और की
फकत मेरे ख्वाबों की जागीर बनकर रहना,

मैं पढता ही रहूँगा हरसू तुम्हे तन्हाई में 
तुम मोहब्बत की हँसीन तहरीर बनके रहना॥

 

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नर्म हाथों से फिसल जाती हैं चीज़ें अक्सर...
उनके हाथों में मेरा दिल है.. खुदा ख़ैर करे...!!

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मेरे लबों की तुम बात बनकर रहना
हंसीन ख्वावों की रात बनकर रहना,

सुलगती है मेरे अरमानो की बस्ती
तुम सावन की बरसात बनकर रहना,

यह दुनियां हो गयी वीरान दूर तलक
मेरी ज़मीं में कायनात बनकर रहना,

पत्थर सा वज़ूद है अहसास ना रहे
मेरे सीने में जज्वात बनकर रहना,

जहां खत्म हो जाए ये ज़िंदगी मेरी
तुम साँसों सी शुरुआत बनकर रहना,

है दूरियां सदियों हमारे दरमियाँ

तुम ख्वाबों में मुलाक़ात बनकर रहना॥

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मेरे टूटने की वजह मेरे................. जौहरी से पूछो
उसकी ख्वाहिश थी कि मुझे थोड़ा और तराशा जाय.

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 आहिस्ता चल ज़िन्दगी,
अभी कई क़र्ज़ चुकाना बाकी है,
कुछ दर्द मिटाना बाकी है,
कुछ फ़र्ज़ निभाना बाकी है;
रफ्तार में तेरे चलने से कुछ रूठ गए, कुछ छूट गए ;
रूठों को मनाना बाकी है,
रोतो को हंसाना बाकी है ;
कुछ हसरतें अभी अधूरी है,
कुछ काम भी और ज़रूरी है ;
ख्वाइशें जो घुट गयी इस दिल में,
उनको दफनाना अभी बाकी है ;
कुछ रिश्ते बनके टूट गए,
कुछ जुड़ते जुड़ते छूट गए;
उन टूटे-छूटे रिश्तों के ज़ख्मों को मिटाना बाकी है ;
तू आगे चल में आता हूं,
क्या छोड़ तुझे जी पाऊंगा ?
इन साँसों पर हक है जिनका,
उनको समझाना बाकी है;
आहिस्ता चल जिंदगी,
अभी कई क़र्ज़ चुकाना बाकी है|


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तुझे मोहब्बत है मुझसे इतना वहम रहने दे
देख करके पहचान लोगे इतना भरम रहने दे,

रख देना कभी भूले से मेरे दर पर तुम दोस्त
ज़िंदगी के सफर में एक ऐसा कदम रहने दे,

अपने दिल में ना सही पैरों की धूल में ही रख
अपनी ज़िंदगी में मुझे कहीं तो सनम रहने दे,

कुछ लोग ज़ी लेते हैं फकत बीते लम्हों से ही
बेनूर ज़िंदगी में अपनी यादों के मौसम रहने दे,

मेरा वादा है तुझसे मिलूंगा आकर फिर से मैं
बस मेरे खुदा तू मेरा एक बाकी जनम रहने दे,

सारे वादे एक तू ही पूरे कर पाया इस जहां में
मेरे हिस्से में बाकी हर टूटी हुई कसम रहने दे,

मोहब्बत बाँट देना खुदा नाज़ुक दिल वालों को
इस सारे जहां में बाकी मुझको बेरहम रहने दे,

उसको मिल जाएँ जहां की खुशियां ये मेरे ख़ुदा
"मणि" की झोली में बाकी सारे ही सितम रहने दे


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ज़िंदगी मिलती रही हमे किश्तों में
अजीब खलिश रही सभी रिश्तों में,

वोही मेरी बेबसी को समझ ना सका
जिसको गिनता रहा सदा फरिश्तों में,

अजीब पढाई का चलन है स्कूलों में
थाली हैं किताबों की जगह बस्तों में,

हरा हो पेड़ तो बसते हैं परिंदे आकर
साँप और बिच्छू मिलते हैं दरख्तों में,

ज़िंदगी ने बना दिया बुत हमको
कभी गिनती होती थी मेरी मस्तों में



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नहीं चलेंगी इश्क़ मे अब और उधारियाँ........................
-----मेरी मुहब्बत का हर एहसास वापिस कर------ !!

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पिछले बरस था खौफ कि तुझको खो ना दूँ कही,
अब के बरस ये दुआ है कि तेरा सामना ना हो...

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ये अपनी जिद पे थीं बढ़ती हुई उमर के साथ,
मुश्किलें और जबां थी बढ़ती हुई उमर के साथ,

कोई सूरत न राहत की नज़र आती थी दूर तक,
उम्मीदें बुझ रही थीं बढ़ती हुई उमर के साथ,

नज़र उसकी भी न रही थी कुछ मेहरबां मुझपे,
रोशनी हो चली धुंधली बढ़ती हुई उमर के साथ,

कोई निस्बत न किसी को न गरज थी बाकी,
बढ़ रही ख्वाहिशे-जर बढ़ती हुई उमर के साथ.

जीने को जी लिया दुनिया जो था नसीब मेरा,
मगर मुश्किल है अब बढ़ती हुई उमर के साथ,

मेरा खुद का लगाया चमन ही जब सूखने लगा,
होता गुलजार मैं कैसे बढ़ती हुई उमर के साथ,

तसब्बुर भी न किया था कभी न सोचा मैंने,
बिगड़ हालात यूं जायेंगे बढ़ती हुई उमर के साथ,

लहू भी कम रगों में रौशनी-ओ-कूबत भी कम,
दर्द भी काश! कम होते बढ़ती हुई उमर के साथ,

न थी दरकार कभी कोई सै भी दुनिया की मुझे,
अदब तो होता 'मणि' बढ़ती हुई उमर के साथ,

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अपना तो चाहतों में यही उसूल है,
जब तू क़बूल है तो तेरा सब कुछ क़बूल है।

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पाते ही कुरसी सब ईमान भूल जाते हैं
पैसा ही याद रहता इंसान भूल जाते हैं,

धन,दौलत,ऐशो-आराम में जीने वाले
ना जाने क्यों ये शमशान भूल जाते हैं,

याद रह जातेहै फकत बीबी और बच्चे
माँ--बाप का सब अहसान भूल जाते हैं,

हमेशा ज़िंदगी खरीदने वाले करोड़पति
पास की कफ़न की दुकान भूल जाते हैं,

पहनकर सूट,चश्मा,टाई बन गए अँग्रेज़
इस भारत देश की पहचान भूल जाते हैं,

याद सबको शीला की जवानी यहाँ,
अपने वतन का ये राष्ट्रगान भूल जाते हैं

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खामोशी मेरे खतों का जबाव होती गयी
यह मोहब्बत मेरे लिए ख्वाब होती गयी,

खार थे,खार हैं और खार ही रहेंगे हम
मेरे चमन की दूब भी गुलाब होती गयी,

खुशियों के अलफ़ाज़ कहीं मिल ना सके
ये ज़िंदगी मेरी दर्द की किताब होती गयी,

सूरज ना निकला बादलों की ओटसे कभी
जुगनुओं की चमक आफताब होती गयी,

अश्क बहकर गिरे सदा हाथों के ज़ाम में
आंसुओं की हर बून्द ही शराब होती गयी,

हसरत करते रहे हम चाहत के इनाम की
ज़हाँ की नफरत मेरा खिताब होती गयी,

वह आ गया एक दो बार मेरे ख्वाबों में
मेरी आँखों की आदत खराब होती गयी,

छुपाता रहा यह पीर सदा सीने में ही,
बहते हुये आंसुओं से ही बेनक़ाब होती गयी

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अब सज़ा दे ही चुके हो तो मेरा हाल ना पूछना,
गर मैं बेगुनाह निकला तो तुम्हे अफ़सोस बहुत होगा.
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अगर फुर्सत के लम्हों में मुझे याद करते हो तो अब मत करना,
क्योंकि मैं तन्हा जरूर हूँ ... मगर फ़िज़ूल बिलकुल नहीं.

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झिलमिल सितारों का आँगन होगा,
रिमझिम बरसता सावन होगा,
ऐसा सुन्दर सपना, अपना जीवन होगा,
प्रेम की गली में, एक छोटा सा घर बनायेंगे,
कलियाँ ना मिले ना सही, काँटों से सजायेंगे,
बगिया से सुन्दर वो बन होगा,
फिर तो मस्त हवाओं के हम झोंकें बन जायेंगे,
नैना सुन्दर सपनों के झरोखे बन जायेंगे,
मन आशाओं का दर्पण होगा॥

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ज़िंदगी की बढ़ती ये दुशवारियां बहुत हैं
ज़माने में होती यह रुसवाईयाँ बहुत हैं,
कोई डर ना खौफ कानून का किसी को
सरेआम कत्ल होती दामिनियाँ बहुत हैं,
बचपन भी अब तो महफूज़ नहीं है यहां
खतरे में अपनों से ही जवानियाँ बहुत हैं,
भारतीय संस्कृति दूर बहुत हो गयी अब
पश्च्चिमी रंगों में रंगी लड़कियाँ बहुत हैं,
हमारी आँखों में नींद आती नहीं वरना
ख्वाबों की आने की तो तैयारियाँ बहुत हैं,
अजीब वक्त है ज़िंदगी के सफर का
कद से लम्बी होती ये परछाइयाँ बहुत है॥

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जगह मिली ना फूलों में
गिनती हुई बबूलों में,
ज़िंदगी जिंदगी ना रही
उलझी रही उसूलों में,
मन पींगे भरता रहा
हमेशा यादों के झूलों में,
ज़खम सारे सुन्न हुए
सितम बचा ना शूलों में,
पलकों से ख्वाब गिरे जो
हमने ढूंढें हैं धूलों में ,
अरमाँ राख हुए  
वक्त की जरा सी भूलों में

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उनके होंठो में गुलाब नज़र आते हैं
सारे ज़माने के शबाव नज़र आते हैं,
देख कर ही नशा हो जाता है हमको
वो तो मुकम्मल शराब नज़र आते है,
जितना पढ़ा मदहोश हो गए हम तो
वो मोहब्बत की किताब नज़र आते हैं,
जबसे देखा चैन से सो ना सके कभी
जागती आँखों के ख्वाब नज़र आते हैं,
कितनी सवालिया है यह ज़िंदगी
सब सबालों के वो ही जबाव नज़र आते हैं

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बुलन्दियों को पाने की चाहत तो बहुत थी
मगर...................................,
दूसरों को रौंदने का हुनर कहां से लाता.....!!!!!

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सारे जहां में एक चेहरा तलाश करते रहे
हर पल बीती यादों को ही पास करते रहे,
लिखी दो गज़ ज़मीन हसरतों की खुदा ने
हम नाहक अरमानो का आकाश करते रहे,
वो बादल ना बरसा बंज़र समझ के मुझपे
ओस की बूँदों से दूर हम प्यास करते रहे,
परिंदे गए सदा को जब से सूखा शज़र हुये
आज भी लौट के आने की अरदास करते रहे,
जाले लग गये चाहतों की बस्ती में  
बीते लम्हों से ही ज़िंदगी मधुमास करते रहे

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टूटी डाली पर फूल खिला नही करते
चाहने वाले रोज़ ही मिला नहीं करते,
ख़ाक हो जाते हैं राख भी मिलती नहीं
कपूर हैं हम मोम सा जला नहीं करते,
कदमों की चुभन ही नसीब है हमारा
सारे फूल सेज़ पर ही बिछा नहीं करते,
दिलों में रहते हैं शूल बनकर हम सदा
लबों पे तबस्सुम जैसे सज़ा नहीं करते,
हमको देखना है तो अँधेरा कर दो
यह जुगनू उजालों में दिखा नहीं करते ॥

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इतने करीब आके सदा दे गयी मुझे,
मै बुझ रहा था वो हवा दे गयी मुझे ।
उसने भी खाक डाल दी "मणि" की कब्र पर,
वो भी मोहब्बतों का सिला दे गयी मुझे ।।

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“ये जो मेरे क़ब्र पे रोते है…….
अभी उठ जाऊँ ..तो जीने ना दे….. !!

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तुम हमारे रहो! हम तुम्हारे रहें!!
अब धरती से आगे औ सागर परे
शर्त इतनी करें,
धीर धारे रहें!
तुम हमारे रहो! हम तुम्हारे रहें!!
चल चलाचल से आगे
औ धरातल परे
दृष्टि वृष्टि औ सृष्टि के आगे धरें
हाथ हाथों में ले ले और धारे रहें
शर्त इतनी करें,
धीर धारे रहें!
तुम हमारे रहो! हम तुम्हारे रहें!!
कल जो था ये वही है वही और होगा
सैर घूमें और जाने काल के भी परे,
'इति' देखो ! आप ही हो आप के ही परे!
चल तलातल के आगे और सागर परे
शर्त इतनी करें,
धीर धारे रहें!
तुम हमारे रहो! हम तुम्हारे रहें!!

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बूँद समंदर में गिर के भी प्यासी रह गयी
बहारों में भी कुछ फूलों पे उदासी रह गयी,
हर ज़ख्म ताज़ा है दिया हुआ वक्त का
मेरे दिल की हर आरज़ू बासी रह गयी,
मेरे घर में यादों के सिवा कुछ ना मिला
बेहिस वक्त की अधूरी तलाशी रह गयी,
अँधेरा तो बदनाम था मेरी ज़िंदगी का
गुनहगार ज़िंदगी की उजासी रह गयी,
दूर कर दिया वादा किया था मैंने उससे
दिल की हर साँस उसकी दासी रह गयी,
हर लम्हा आँखे भिगो लेता हूँ बैठके
मेरी ज़िंदगी की इतनी अय्याशी रह गयी

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सूखे हुए शज़र पर परिंदे बसेरा नहीं करते
जुगनू लाख हो रातों का सवेरा नहीं करते,
फूल हैं जो महका देते हैं पूरे गुलशन को ही
कांटे फ़िज़ां में कभी खुश्बू बिखेरा नहीं करते,
हम चिराग हैं ज़िंदगी के तूफानों से बुझे हुए
भूल के भी किसी की राह में अँधेरा नहीं करते,
एक अक्स छप गया है दिल की दीवारों पर
रोज़ नई तस्वीर ज़हन में उकेरा नहीं करते,
हम नादाँ परिन्देँ हैं दर-दर उड़कर जाने वाले
किसी एक मुकाम पर ताउम्र डेरा नहीं करते,
तुम हो जो चले आते हो हरसू ख्यालों में  
हम भूल के भी तेरे ख्वाबों में पग फेरा नहीं करते-


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कश्ती तेरा नसीब चमकदार कर दिया,
इस पार के थपेड़ों ने उस पार कर दिया,
अफवाह थी कि मेरी तबीयत खराब है,
लोगों ने पूछ-पूछ के बीमार कर दिया ।।

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प्यार को प्यार के रंगों में मिलाकर लिखना,
खत उसे लिखना तो तितली के परों पर लिखना ।
दोस्ती क्या है, यह दुनिया को भी अन्दाजा लगे,
खत उसे लिखना तो दुश्मन के पते पर लिखना ।।

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ना कैद ना रिहाई ना जाने कैसी सज़ा हो गयी,
मेरी मासूम आँखों से यह कैसी ख़ता हो गयी।
मोहब्बत में नसीब हुए हमे आंसू और दर्द ही,
देख के तुम्हे ज़िंदगी की कीमत अदा हो गयी।
मेरी हथेली में कहीं तुम्हारी लकीर नहीं मिली,
तुम्हे मांगते रहना मेरे हाथो की रज़ा हो गयी।
दो आंसू भी मिल ना सके इस मोहब्बत में हमे,
ना जाने चाहत में हमसे ये कैसी वफ़ा हो गयी।
जरा कांटो को हसरत से हमने देख क्या लिया,
गुलशन की हर कली ही मुझसे खफा हो गयी।
किसी की जुदाई से लाश बन जाते हैं जीने वाले,
एक हंसी याद ही हमारे जीने की वज़ा हो गयी।
हसीन बहारों ने कभी देखा ना हसरतों से हमे,
पतझड़ की सदायें हमपे सदा को फ़िदा हो गयीं।
कहीं कोई कली मुरझा के टूट गयी है आज,
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छेडने लगी सहेलियाँ  चुलबुली  को,,,
,,,,,,,,,,मुझसे मिलने के बाद ,,
के रंग क्योँ बदला है तेरे होठोँ का,,
,,,,,,,,,उससे मिलने के बाद,,,,  ::
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हाथों में मेरे सूख गये हैं गुलाब कई
आँखों में मेरी चुभ गये हैं ख्वाब कई,
अभी साँसे ही तो ली हैं गम क्या है
ज़िंदगी के बाकी हैं अभी हिसाब कई,
बहता लहू देख लेते हैं अब भी लोग
ज़ख्मों पर हमने लगाये हिज़ाब कई,
खामोश रहता हूँ वक्त को देखकर मैं
दुनिया को अभी देने मुझे जबाव कई,
सदा बादलों की ओट में ही छुपे रहे हैं
यूँतो मेरी सब राहों में थे आफताब कई,
चेहरा आइना और दिल पत्थर निकला
चेहरों पे लगाये फिरते लोग नक़ाब कई,
हंसी बहारों में सदा मुरझाते रहे हम  
पतझड़ों के हिस्से गये है मेरे शबाव कई-
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सो जाऊँ ताउम्र को आँखों में तेरा ख्वाब लिये
तुम चले आना हाथो में महकता गुलाब लिये,
यह लब प्यासे ही रहे मयखानों में रहके भी
तुम चले आना अपनी आँखों की शराब लिये,
जब भी पूंछेगा ख़ुदा मेरी मोहब्बत का शवव
मेरे अश्क आ जाएंगे चाहतों का जबाब लिये,
यह बेहिस अंधेरे ही हमारा मुक़ददर बन गए हैं
जुगनुओं कभी आ जाना रातों में आफताब लिये,
यह फूल तनहा देखकर हँसते रहते है मुझ पर
काँटों बस तुम ही चले आना मेरा माहताब लिये,
लिख दूंगा लहू से चाहतों के सब अलफ़ाज़
तुम चले आना मोहब्बत की कोरी किताब लिये-
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लबों पर सज़ते हम ऐसा नाम ना थे
जीत लाते सीता को हम राम ना थे,
जब मालूम हुई कीमत मोहब्बत की
तो मेरी ज़िंदगी में इसके दाम ना थे,
जब सताया प्यास ने हमे शिद्द्त से
हमारे हाथों में बाकी कोई जाम ना थे,
आ जाती हंसती हुई बहारें पास मेरे
हम इतनी दिलकश हंसी शाम ना थे,
चल ना सके तो मंजिलें बहुत ही थी
कदम संभले तो बाकी मुकाम ना थे,
पहरों बैठा करते हैं गुलशन में  
फूलों के पास मेरे लिए पैगाम ना थे.
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वो मेरा हो कर भी मुझ से महरूम रहा...
कोई मुझ सा भी जीत के हारा होगा ...!!
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उसकी एक नजर, अरमानों को खाक कर गई,,,
वो आई अमेरिका सी,, मुझे ईराक कर गई..
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वक्त के साथ सब परिंदे उड़ना सीख जाते हैं
जलती शम्मां में पतंगे जलना सीख जाते हैं,
मुसीबते सिखा देतीं हैं फलसफा ज़िंदगी का
ठोकरों से ही इंसान सम्भलना सीख जाते हैं,
बहारों की चाह में गुजर जाती है यह ज़िंदगी
कुछ फूल हंसके पतझड़ों में पलना सीख जाते हैं,
गर कैद हो पहली तो तकलीफ बहुत देती है
धीरे धीरे हाथ सलाखें पकड़ना सीख जाते हैं,
सब आंसुओं को ही दामन नहीं मिला करता है
मासूम यह अश्क धूल में मिलना सीख जाते है,
हसरतें दिल की पूरी हों या ना हों कभी  
चाँद पाने को बच्चों सा मचलना सीख जाते हैं-

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उन जुल्फों की बस्ती कितनी हसीन थी
मेरे मुक़ददर की वो दो गज़ ज़मीन थी,
खोकर उनमे भूल जाते थे दर्द हम सारे
जैसे शराब के साथ में रखी नमकीन थी,
मिलती थी ज़िंदगी मुझे पास रहकर ही
मुझे ज़िंदा करने की जैसे कोई मशीन थी,
ये आँखे बंद करके खो जाते थे ख्यालों में
मेरी सभी पाक वफाओं का वो यकीन थी,
है कोरा कागज़ सा नसीब यह अपना
तेरे साथ बीते लम्हों से ज़िंदगी रंगीन थी

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उम्र भर चलते रहे मगर कंधो पे आये कब्र तक,,,,,
बस दस कदम के वास्ते गैरों का अहसान हो गया".
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मैं और तुम हम होते ऐसी मुलाक़ात नहीं आई
लब भीगते शिद्द्त से ऐसी बरसात नहीं आई,
हर शब बीती है सदियों की तरह लम्बी वीरान
कब भोर हुई पता ना लगता ऐसी रात नहीं आई,
दो बोल ही तुम्हारे ज़िंदगी की साँसे बन जाते
तुम्हारी ज़ुबाँ पे भूलके भी ऐसी बात नहीं आई,
दिखाके झूंठे ख्वाब तुम्हारा चैनो-सुकून लूटते
मेरी मोहब्बत की कभी भी ऐसी ज़ात नहीं आई,
हाथो से हाथ छूट गया फिर कुछ बाकी ना  
तुमसे बिछुड़ने से ज्यादा कोई भी घात नहीं आई

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जब हम आइना हुए वो पत्थर हो गये
जब बने हम मरहम वो खंज़र हो गये,
जब वोने चाहे बीज मोहब्बत के हमने
वो हमारी बदनसीबी का बंज़र हो गये,
दो बूँदे हम मांगते ही रहे मोहब्बत की
वो चाहतों का सूखा हुआ समंदर हो गये,
हर आईने में सूरत उसी की दिखती है
इसकदर वो मेरी साँसों के अंदर हो गये,
बेरुखी ज़माने की कहाँ ले आयीं हैं
हम भी नफरतों के अब सिकंदर हो गये

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मुझे देखले मोहब्बत से ऐसी नज़र ढूंढता हूँ
कौन हुआ मुकम्मल है ऐसी खबर ढूंढता हूँ,
जरा सी छाँव मिल जाए तपती धुप में मुझे
ज़िंदगी की सब राहों में ऐसा शज़र ढूंढता हूँ,
एक घर बना लूँ कांच की चाहतों का मैं भी
ज़माने में हसीन पत्थरों का नगर ढूंढता हूँ,
एक किरण छू जाए मेरे अंधेरों को भी कभी
तन्हा अँधेरी रातों की एक ऐसी सहर ढूंढता हूँ,
हूँ खड़ा किनारों पे आज भी प्यासा मुद्द्तों से
छूले सूखे लबोंको चाहतों की ऐसी लहर ढूंढता हूँ,
ना जाने कौन सी वजह है वावफा होने में मुझे
अपनी वफाओं में आज भी बाकी कसर ढूंढता हूँ,
ख़ाक बनकर लग जाऊं आँख में काज़ल के जैसे
अपने दिल की हसरतों का ऐसा हसर ढूंढता हूँ ,
सीने की एक-एक सांस हो जाये उसकी ही
अपनी दुआओं में मैं ऐसा गहरा असर ढूंढता हूँ
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सुन ऐ दिल चल आज तुझसे एक सौदा हम करे
मैं तड़पना छोड़ दूँ गर तू धड़कना छोड़ दे
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काज़ल की तरह आँखों में लगा लीजिये
मेंहदी की तरह हाथों में रचा लीजिये,
हम भी जी लेंगे एक पल में सारी ज़िंदगी
पलभर को सीने में साँसों सा बसा लीजिये,
आ जायेंगे हम भी मेहमान बनके दोस्त
कभी ख्वावों में हमको भी बुला लीजिये,
रोना भूल जायेंगे कुछ पल को हम भी
अपने लबों पे तबस्सुम सा सज़ा लीजिये,
मैं गीत हूँ नफरतों का सच है यह संजू
तुम मोहब्ब्त समझकर गुनगुना लीजिये
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तेरी हंसी को ज़िंदगी समझ लेता हूँ
मुझे देख के तू मुस्कुराया ना कर,
आँखों में रहने दे ख्वाब की तरह ही
आंसू की तरह मुझे गिराया ना कर,
रहना है दूर जानता हूँ शिद्द्त से
यूँ मेरे हाथो से हाथ छुड़ाया ना कर,
हम बेज़ुबान मेहमान दो पल के हैं संजू
आँगन से परिंदो को कभी उड़ाया ना कर
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दिल टूटा तुम्हारा पर बेबफा हम नहीं हैं
तुम रूठे हो सदा को पर खफा हम नहीं हैं,
मुस्कुरा दे देख के हमे चमन के कांटे ही
कभी इतनी भी दिलकश अदा हम नहीं हैं,
बद्दुआओं में ही नाम ले लो तुम हमारा
तुम्हारी हसरतों की कोई सदा हम नहीं हैं,
है आरज़ू तुम्हारी पर बदनसीबी बहुत है
तुम्हारी हंसी चाहतों की वफ़ा हम नहीं हैं,
तुम्हारे दो आंसू भी मिल ना सके हमको
ऐसी भी ज़माने की भारी खता हम नहीं हैं,
है मुकददर हमारा जो सलाखें पड़ीं हैं संजू
अपने कर्मो की कोई भी तो सज़ा हम नहीं हैं
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गैर होके भी तुझे अपना ही मानते रहे
अपने दिल में धड़कनो सा पालते रहे,
हमे नफरत मिली मोहब्ब्त में गम नहीं
हम तो सदा तुम्हे ज़िंदगी सा चाहते रहे,
नहीं हो इन हाथो की लकीरों में फिर भी
हर दर पे दुआओं में तुम्हे ही मांगते रहे,
थे आंसुओं के धारे इन आँखों में हमारी
तेरी तस्वीर फिर भी पलकों में टांगते रहे,
मेरे ख्वाबों में भी ना आते हो देखा है मैंने
सदियों से तुम्हारी राह को हम ताकते रहे,
तुझे भूलने का वादा निभा देते हम संजू
ना जाने क्यूँ रोज़ ही कल पर टालते रहे
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आंसू पीके प्यास बुझा ली हमने
तब जाके समंदर को पता लगा,
जल गये हम धूप में ही खड़े खड़े
तब उस हरे शज़र को पता लगा,
जब फूल सूख के राख हो गये सब
बहार को तब चमन का पता लगा,
जब पेड़ का ठूंठ रह गया बाकी
परिंदों को तब उसका पता लगा,
मुकाम की चाह जब खत्म हो गयी थी
मंज़िल को तब मुसाफिर का पता लगा,
जब सारे दर्द बन गये दिल के नासूर
मरहम को तब ज़ख्मों का पता लगा,
उस गुलिस्ता के कांटे भी भूल गये जब
तब संजू को बाग़ की राह का पता लगा---
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जिनको मान लिया ज़िंदगी हमने
वही लोग आज हमसे जुदा हो गये,
जो वक्त ने चाहाथा वही उसने किया
दोस्तों वो इंसान नहीं खुदा हो गये,
गये थे कुछ चाहतों के गुलाब लेकर
उनकी हंसी नफरतों की सदा हो गये,
दोस्त नहीं दुश्मन जैसे रह गये थे
वो भी अज़ीज़ अब गुमशुदा हो गये,
पहली बार यह दिल दुखा था बहुत
यह गम मेरे जीने की अदा हो गये,
कुछ गुलाब मुह फेरते ही रहे "मणि" से
चमन के कांटे हमपे फ़िदा हो गये
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बेशक मैं सो तो जाउंगा शिद्द्त से दोस्त
शर्त यही है की तुम ख्वाब में चले आना
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मेरी यादों में सनम पिघल रहा होगा
उफ़ ! मेरे पैरों में ये चुभन कैसी है
शायद कोई अपना काँटों पर चल रहा होगा ||
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पराये दर्द में अपनी आँखे नम कौन करता है
बहते हुए अश्कों को यहाँ कम कौन करता है,
चले जाते हैं सूखे शज़र से परिंदे भी उड़कर
गमों के मारों से मोहब्ब्त कौन करता है,
पसंद आते हैं खिले महकते गुलाब ही सबको
मुरझाये हुए फूलों की चाहत कौन करता है,
वक्त सही हो लोग बिठा लेते हैं पलको पर ही
उजड़े हुए पे आंचल की छाया कौन करता है,
वो आँधियों में नीचे गिरकर ही मर जाते हैं
गिरे हुए परिंदों को घोसलों में कौन करता है,
चमकते सिक्कों को भी लोग लगाते सीने से
धूल में दबे हीरों पे इनायत कौन करता है,
डगमगाते जहाज़ से भाग जाते हैं मुसाफिर
डूबती हुई कस्ती पर सवारी कौन करता है,
प्यास में ही लोग जाते हैं दरिया पास  
जहाँ में बिन मतलब के यारी कौन करता है
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नये घर में चीज़े पुरानी कौन रखता है
बिन आंसुओं के कहानी कौन रखता है,
दिलों में तो चाहत होती है खुशियों की ही
इसमें ज़ख्मों की निशानी कौन रखता है,
बुढ़ापे पे अपने ही साथ छोड़ जाते हैं यहाँ
बुज़ुर्गों की खाट आंगन में कौन रखता है,
खुश हैं तो भी तकलीफ है इस ज़माने को
दर्द के साये में कंधे पे हाथ कौन रखता है,
चुभ जाते हैं फूलों की ही चाहत में हमेशा
जानकर कर्कश कांटो पे पैर कौन रखता है,
मरने पे चढ़ जाते पूरे के पूरे गुलशन के गुल
ज़िंदा रहते इन हाथों में फूल कौन रखता है,
जल जाते हैं शम्मा की आरज़ू में ही परवाने
जानके इश्क के शोलों पर पैर कौन रखता है,
भूल जाते हैं लोग अपने साये को भी तो  
हम दूर ही रहने वालों को याद कौन रखता है--
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नये घर में चीज़े पुरानी कौन रखता है
बिन आंसुओं के कहानी कौन रखता है,
दिलों में तो चाहत होती है खुशियों की ही
इसमें ज़ख्मों की निशानी कौन रखता है,
बुढ़ापे पे अपने ही साथ छोड़ जाते हैं यहाँ
बुज़ुर्गों की खाट आंगन में कौन रखता है,
खुश हैं तो भी तकलीफ है इस ज़माने को
दर्द के साये में कंधे पे हाथ कौन रखता है,
चुभ जाते हैं फूलों की ही चाहत में हमेशा
जानकर कर्कश कांटो पे पैर कौन रखता है,
मरने पे चढ़ जाते पूरे के पूरे गुलशन के गुल
ज़िंदा रहते इन हाथों में फूल कौन रखता है,
जल जाते हैं शम्मा की आरज़ू में ही परवाने
जानके इश्क के शोलों पर पैर कौन रखता है,
भूल जाते हैं लोग अपने साये को भी तो  
हम दूर ही रहने वालों को याद कौन रखता है--
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सारे गुल मुरझा गये मेरे चमन के
आज तुझे मैं कौन सा गुलाब दूँ,
तू सुनता नहीं कभी मेरे दिल की
फिर तुझे और कहाँ से जबाब दूँ,
क्या खोया और क्या पाया यहाँ
खुद के सिवा किसको हिसाब दूँ ,
हैसियत नहीं अँधेरा भी देने की
जी चाहता है तुझे आफताब दूँ,
ढक दे तेरे सारे ही दर्दो-गम  
अपनी मोहब्ब्त को वो हिज़ाब दूँ
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हर मोड़पे मैंने तेरा इंतज़ार किया है
इस दिल को हमेशा बेकरार किया है,
जानता हूँ तुम अमानत हो परायी ही
तेरी तस्वीर से रोज़ इज़हार किया है,
लबों से तेरा नाम ले नहीं सकता हूँ मैं
अपनी गज़लों में तेरा सृंगार किया है,
गम और ख़ुशी में एक सा ही दिखूं
खुद को इस तरह से तैयार किया है,
जख्म भर चुके थे सारे ही मेरे दिल के
तेरी यादों ने आज फिर वार किया है,
हम तेरे लिए झूटे ही हैं इस दुनिया में
मैंने एक तुझपे ही तो ऐतवार किया है,
कैसे भुला दूँ ये दिल का रिस्ता है  
खेल नहीं मैंने तो तुझसे प्यार किया है
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ख्वाब में भी मैं तेरी राह देखता हूँ
तेरी आँखों में वो ही चाह देखता हूँ,
चले थे जो चंद दूरियां साथ-साथ
तेरे कदमों के वो निशान देखता हूँ,
कैसे वीराँ होते हैं हरे-भरे गुलिस्तां
ज़िंदगी के अधखिले गुलाब देखता हूँ,
गिर गये हवाओं में ही हैं नीचे परिंदे
शज़र पे घोंसलों के निशान देखता हूँ,
कभी वक्त कभी तकदीर कभी खुदा
सबका ही तो रोज़ अहसान देखता हूँ,
वक्त ने कर दिया सदियों का फासला
मैं आज भी तुझे अपने साथ देखता हूँ,
कुछ तो था तेरे चेहरे में मेरे अज़ीज़
क्यूँ हर चेहरे में तेरा अक्स देखता हूँ,
प्यार में आंसू नहीं तो कुछ नहीं  
दीवानो की आँखों को नम देखता हूँ-------------संजीव शर्मा
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गैर नहीं अपने ही रुला कर के चले गये
ताउम्र को नज़रों से गिरा कर चले गये,
मोहब्ब्त के पेड़ पर चढ़ा कर मुझको
नफरतों की आरी चलाकर चले गये,
सावन बरसे ताउम्र हरे ना हो पाएंगे
हमको ऐसे ठूंठ बना कर चले गये,
ले गये चैन सुकून करार सब ही मेरा
आंसुओं के दरिया में डुबाकर चले गये,
भर ना सकेंगे अब कभी भी दोस्त
कुछ ऐसे जख्म बना कर चले गये,
तुम्हारी ज़िंदगी है जलती चिता
बस अपने दो आंसू बहा कर चले गये---
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उसकी जिंदगी में मेरा भी नाम दे
एक पल को ही चाहतों का जाम दे,
ज़िंदगी गुजरी है छांव की तलाश में
उसके गेसुओं में मुझे एक ही शाम दे,
वो आ रहे हैं आज मिलने को तुमसे
ये हवा कभी तो मुझे यह पयाम दे,
दुनिया जानती है अंधेरो से मुझे यहा
कभी तो मुझे उजालों का मुकाम दे,
नफरतो की बस्ती में उम्र गुजरी
एक लम्हे को ही मोहब्ब्त का पैगाम दे
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